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Jun 21, 2023

How Can we use AI for Sanskrit ? | Sanskrit Essay for AI or AI for Sanskrit ? | Use of AI in Sanskrit | Sanskritwala

How can we use AI for Sanskrit ?


Yes, AI can be used for various applications related to Sanskrit. 
Here are 10 examples of how AI can be utilized for Sanskrit:

Sanskrit Translation: AI can be used to develop advanced machine translation systems that can accurately translate Sanskrit texts into different languages and vice versa. This can help in bridging the language barrier and making Sanskrit literature more accessible to a wider audience.

Sanskrit Grammar Checking: AI-powered grammar checking tools can be developed specifically for Sanskrit, helping learners and scholars to identify and correct grammatical errors in their writing.

Sanskrit Text Analysis: AI algorithms can analyze Sanskrit texts, extract information, and provide insights into the linguistic structure, vocabulary usage, and stylistic features. This can aid in literary analysis and research.

Sanskrit Text Summarization: AI can automatically generate concise summaries of lengthy Sanskrit texts, making it easier for researchers and students to grasp the main ideas and themes without having to read the entire text.

Sanskrit Voice Recognition: AI can be used to develop voice recognition systems that can accurately transcribe spoken Sanskrit. This can be beneficial for language learning, preserving oral traditions, and creating speech-to-text applications.

Sanskrit Text Generation: AI models trained on Sanskrit texts can generate new content in Sanskrit, such as poems, stories, or essays, mimicking the style and structure of the language. This can be a valuable tool for creative writing and generating new literary works.

Sanskrit Pronunciation Training: AI can provide interactive pronunciation training for Sanskrit learners, offering real-time feedback and guidance to improve their pronunciation skills.

Sanskrit Language Learning: AI-powered language learning platforms can provide personalized learning experiences for Sanskrit learners, adapting the curriculum and exercises based on individual needs and progress.

Sanskrit Document Classification: AI can automatically classify Sanskrit texts into different categories or topics, helping in organizing and indexing large collections of Sanskrit literature.

Sanskrit Speech Synthesis: AI can be utilized to develop natural-sounding speech synthesis systems for Sanskrit, enabling the generation of high-quality audio content in the language for various applications such as audiobooks or language learning resources.

These are just a few examples of how AI can be applied to Sanskrit. With advancements in AI technologies, the possibilities for utilizing AI in Sanskrit-related tasks are continuously expanding.

Visit www.sanskritwala.com for more. 

Apr 17, 2023

उच्चारणशुद्धिः Webinar | All about उच्चारणशुद्धिः Webinar | From Team ॥ पठनम् ॥

उच्चारणशुद्धिः
A webinar to imrove your pronunciation.



નમસ્કાર
આગામી સમયમાં આયોજિત उच्चारणशुद्धिः વેબીનારમાં 
સંસ્કૃત ભાષાનું શુદ્ધ ઉચ્ચારણ શીખવવામાં આવશે.
શીખવવા માટે તજજ્ઞ તરીકે ગુજરાત રાજ્ય સંસ્કૃત બોર્ડનાં સંસ્કૃત તજજ્ઞ આપણી સાથે જોડાશે.
આ વેબીનારમાં જોડાવા માટેની કોઈ જ ફી નથી, એટલે કે એ તદ્દન નિઃશુલ્ક છે.
સંસ્કૃત ભાષાનું શુદ્ધ ઉચ્ચારણ શીખવા માંગતા તમામ લોકો આ વેબીનારમાં અવશ્ય હાજર રહે.
વેબીનારમાં સંસ્કૃત શબ્દો, વાક્યો અને શ્લોકો ના શુદ્ધ ઉચ્ચારણ અંગે માર્ગદર્શન આપવામાં આવશે.

તારીખ : 21, 22 અને 23 એપ્રિલ 2023 
સમય : સાંજે 9:00 વાગ્યાથી.
માધ્યમ : Pathanam YouTube ચેનલ પર લાઈવ Telecast.

उच्चारणशुद्धिः વેબીનાર માટે નીચેની લીંક પરથી વોટ્સેપ ગ્રુપમાં જોડાઈ જવું.

આભાર.
Team ॥ पठनम् ॥


श्री सूक्त का अर्थ | Shri Suktam | Sri Suktham | Shree Suktam

। श्री सूक्त ।
श्री सूक्त महालक्ष्मी की उपासना के लिए ऋग्वेद में वर्णित एक स्तोत्र है। श्री सूक्त का पाठ महालक्ष्मी की प्रसन्नता एवं उनकी कृपा प्राप्त कराने वाला है साथ ही व्यापार में वृद्धि, ऋण से मुक्ति और धन प्राप्ति के लिए भी इसका पाठ तथा अनुष्ठान किया जाता है।
श्रद्धा एवं विश्वास के साथ इस स्तोत्र का पाठ करने वाले व्यक्ति पर माता लक्ष्मी कृपा करती हैं। लक्ष्मी जी की कृपा होने पर व्यक्ति सिर्फ धन और ऐश्वर्य ही नहीं बल्कि यश एवं कीर्ति भी प्राप्त करता है।

॥ श्री सूक्त ॥

ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥१॥
अर्थ – हे सर्वज्ञ अग्निदेव ! सुवर्ण के रंग वाली, सोने और चाँदी के हार पहनने वाली, चन्द्रमा के समान प्रसन्नकांति, स्वर्णमयी लक्ष्मीदेवी को मेरे लिये आवाहन करो।

तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥२॥

अर्थ – अग्ने ! उन लक्ष्मीदेवी को, जिनका कभी विनाश नहीं होता तथा जिनके आगमन से मैं सोना, गौ, घोड़े तथा पुत्रादि को प्राप्त करूँगा, मेरे लिये आवाहन करो।

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुप ह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥३॥
अर्थ – जिन देवी के आगे घोड़े तथा उनके पीछे रथ रहते हैं तथा जो हस्तिनाद को सुनकर प्रमुदित होती हैं, उन्हीं श्रीदेवी का मैं आवाहन करता हूँ; लक्ष्मीदेवी मुझे प्राप्त हों।

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रांज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।
पद्मेस्थितां पद्मवर्णांतामिहोप ह्वये श्रियम् ॥४॥
अर्थ – जो साक्षात ब्रह्मरूपा, मंद-मंद मुसकराने वाली, सोने के आवरण से आवृत, दयार्द्र, तेजोमयी, पूर्णकामा, अपने भक्तों पर अनुग्रह करनेवाली, कमल के आसन पर विराजमान तथा पद्मवर्णा हैं, उन लक्ष्मीदेवी का मैं यहाँ आवाहन करता हूँ।

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्।
तां पद्मिनीमीं शरणं प्र पद्येअलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥५॥
अर्थ – मैं चन्द्रमा के समान शुभ्र कान्तिवाली, सुन्दर द्युतिशालिनी, यश से दीप्तिमती, स्वर्गलोक में देवगणों के द्वारा पूजिता, उदारशीला, पद्महस्ता लक्ष्मीदेवी की शरण ग्रहण करता हूँ। मेरा दारिद्र्य दूर हो जाय। मैं आपको शरण्य के रूप में वरण करता हूँ।

आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो
वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु
या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥६॥
अर्थ – हे सूर्य के समान प्रकाशस्वरूपे ! तुम्हारे ही तप से वृक्षों में श्रेष्ठ मंगलमय बिल्ववृक्ष उत्पन्न हुआ। उसके फल हमारे बाहरी और भीतरी दारिद्र्य को दूर करें।

उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥७॥
अर्थ – देवि ! देवसखा कुबेर और उनके मित्र मणिभद्र तथा दक्ष प्रजापति की कन्या कीर्ति मुझे प्राप्त हों अर्थात मुझे धन और यश की प्राप्ति हो। मैं इस राष्ट्र में उत्पन्न हुआ हूँ, मुझे कीर्ति और ऋद्धि प्रदान करें।

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात् ॥८॥
अर्थ – लक्ष्मी की ज्येष्ठ बहिन अलक्ष्मी (दरिद्रता की अधिष्ठात्री देवी) का, जो क्षुधा और पिपासा से मलिन और क्षीणकाय रहती हैं, मैं नाश चाहता हूँ। देवि ! मेरे घर से सब प्रकार के दारिद्र्य और अमंगल को दूर करो।

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥९॥
अर्थ – जो दुराधर्षा और नित्यपुष्टा हैं तथा गोबर से ( पशुओं से ) युक्त गन्धगुणवती हैं। पृथ्वी ही जिनका स्वरुप है, सब भूतों की स्वामिनी उन लक्ष्मीदेवी का मैं यहाँ अपने घर में आवाहन करता हूँ।

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥१०॥
अर्थ – मन की कामनाओं और संकल्प की सिद्धि एवं वाणी की सत्यता मुझे प्राप्त हो। गौ आदि पशु एवं विभिन्न प्रकार के अन्न भोग्य पदार्थों के रूप में तथा यश के रूप में श्रीदेवी हमारे यहाँ आगमन करें।

कर्दमेन प्रजा भूता मयि सम्भव कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥११॥
अर्थ – लक्ष्मी के पुत्र कर्दम की हम संतान हैं। कर्दम ऋषि ! आप हमारे यहाँ उत्पन्न हों तथा पद्मों की माला धारण करनेवाली माता लक्ष्मीदेवी को हमारे कुल में स्थापित करें।

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥१२॥
अर्थ – जल स्निग्ध पदार्थों की सृष्टि करे। लक्ष्मीपुत्र चिक्लीत ! आप भी मेरे घर में वास करें और माता लक्ष्मीदेवी का मेरे कुल में निवास करायें।

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥१३॥
अर्थ – अग्ने ! आर्द्रस्वभावा, कमलहस्ता, पुष्टिरूपा, पीतवर्णा, पद्मों की माला धारण करनेवाली, चन्द्रमा के समान शुभ्र कान्ति से युक्त, स्वर्णमयी लक्ष्मीदेवी का मेरे यहाँ आवाहन करें।

आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥१४॥
अर्थ – अग्ने ! जो दुष्टों का निग्रह करनेवाली होने पर भी कोमल स्वभाव की हैं, जो मंगलदायिनी, अवलम्बन प्रदान करनेवाली यष्टिरूपा, सुन्दर वर्णवाली, सुवर्णमालाधारिणी, सूर्यस्वरूपा तथा हिरण्यमयी हैं, उन लक्ष्मीदेवी का मेरे लिये आवाहन करें।

तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम् ॥१५॥
अर्थ – अग्ने ! कभी नष्ट न होनेवाली उन लक्ष्मीदेवी का मेरे लिये आवाहन करें, जिनके आगमन से बहुत-सा धन, गौएँ, दासियाँ, अश्व और पुत्रादि को हम प्राप्त करें।

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्।
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ॥१६॥
अर्थ – जिसे लक्ष्मी की कामना हो, वह प्रतिदिन पवित्र और संयमशील होकर अग्नि में घी की आहुतियाँ दे तथा इन पंद्रह ऋचाओं वाले श्री सूक्त का निरन्तर पाठ करे।

पद्मानने पद्मविपद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि।
विश्वप्रिये विष्णुमनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सं नि धत्स्व ॥१७॥
अर्थ – कमल के समान मुखवाली ! कमलदल पर अपने चरणकमल रखनेवाली ! कमल में प्रीति रखनेवाली ! कमलदल के समान विशाल नेत्रोंवाली ! समग्र संसार के लिये प्रिय ! भगवान विष्णु के मन के अनुकूल आचरण करनेवाली ! आप अपने चरणकमल को मेरे हृदय में स्थापित करें।

पद्मानने पद्मऊरु पद्माक्षि पद्मसम्भवे।
तन्मे भजसि पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम् ॥१८॥
अर्थ – कमल के समान मुखमण्डल वाली ! कमल के समान ऊरुप्रदेश वाली ! कमल के समान नेत्रोंवाली ! कमल से आविर्भूत होनेवाली ! पद्माक्षि ! आप उसी प्रकार मेरा पालन करें, जिससे मुझे सुख प्राप्त हो।

अश्वदायि गोदायि धनदायि महाधने।
धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे ॥१९॥
अर्थ – अश्वदायिनी, गोदायिनी, धनदायिनी, महाधनस्वरूपिणी हे देवि ! मेरे पास सदा धन रहे, आप मुझे सभी अभिलषित वस्तुएँ प्रदान करें।

पुत्रपौत्रधनं धान्यं हस्त्यश्वाश्वतरी रथम्।
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे ॥२०॥
अर्थ – आप प्राणियों की माता हैं। मेरे पुत्र, पौत्र, धन, धान्य, हाथी, घोड़े, खच्चर तथा रथ को दीर्घ आयु से सम्पन्न करें।

धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः।
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणो धनमश्विना ॥२१॥
अर्थ – अग्नि, वायु, सूर्य, वसुगण, इन्द्र, बृहस्पति, वरुण तथा अश्विनी कुमार – ये सब वैभवस्वरुप हैं।

वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः ॥२२॥
अर्थ – हे गरुड ! आप सोमपान करें। वृत्रासुर के विनाशक इन्द्र सोमपान करें। वे गरुड तथा इन्द्र धनवान सोमपान करने की इच्छा वाले के सोम को मुझ सोमपान की अभिलाषा वाले को प्रदान करें।

न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभा मतिः।
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्त्या श्रीसूक्तजापिनाम् ॥२३॥
अर्थ – भक्तिपूर्वक श्री सूक्त का जप करनेवाले, पुण्यशाली लोगों को न क्रोध होता है, न ईर्ष्या होती है, न लोभ ग्रसित कर सकता है और न उनकी बुद्धि दूषित ही होती है।

सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतरांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्र सीद मह्यम् ॥२४॥
अर्थ – कमलवासिनी, हाथ में कमल धारण करनेवाली, अत्यन्त धवल वस्त्र, गन्धानुलेप तथा पुष्पहार से सुशोभित होनेवाली, भगवान विष्णु की प्रिया लावण्यमयी तथा त्रिलोकी को ऐश्वर्य प्रदान करनेवाली हे भगवति ! मुझपर प्रसन्न होइये।

विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम्।
लक्ष्मीं प्रियसखीं भूमिं नमाम्यच्युतवल्लभाम् ॥२५॥
अर्थ – भगवान विष्णु की भार्या, क्षमास्वरूपिणी, माधवी, माधवप्रिया, प्रियसखी, अच्युतवल्लभा, भूदेवी भगवती लक्ष्मी को मैं नमस्कार करता हूँ।

महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥२६॥
अर्थ – हम विष्णु पत्नी महालक्ष्मी को जानते हैं तथा उनका ध्यान करते हैं। वे लक्ष्मीजी सन्मार्ग पर चलने के लिये हमें प्रेरणा प्रदान करें।

आनन्दः कर्दमः श्रीदश्चिक्लीत इति विश्रुताः।
ऋषयः श्रियः पुत्राश्च श्रीर्देवीर्देवता मताः ॥२७॥
अर्थ – पूर्व कल्प में जो आनन्द, कर्दम, श्रीद और चिक्लीत नामक विख्यात चार ऋषि हुए थे। उसी नाम से दूसरे कल्प में भी वे ही सब लक्ष्मी के पुत्र हुए। बाद में उन्हीं पुत्रों से महालक्ष्मी अति प्रकाशमान शरीर वाली हुईं, उन्हीं महालक्ष्मी से देवता भी अनुगृहीत हुए।

ऋणरोगादिदारिद्र्यपापक्षुदपमृत्यवः।
भयशोकमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥२८॥

अर्थ – ऋण, रोग, दरिद्रता, पाप, क्षुधा, अपमृत्यु, भय, शोक तथा मानसिक ताप आदि – ये सभी मेरी बाधाएँ सदा के लिये नष्ट हो जाएँ।

श्रीर्वर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं महीयते।
धनं धान्यं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ॥२९॥

अर्थ – भगवती महालक्ष्मी मानव के लिये ओज, आयुष्य, आरोग्य, धन-धान्य, पशु, अनेक पुत्रों की प्राप्ति तथा सौ वर्ष के दीर्घ जीवन का विधान करें और मानव इनसे मण्डित होकर प्रतिष्ठा प्राप्त करे।

॥ ऋग्वेद वर्णित श्री सूक्त सम्पूर्णम् ॥

Apr 2, 2023

Importance of Sanskrit Language Essay | Essay on importance of Sanskrit lamguage | Sanskritwala

Sanskrit, an ancient Indian language, has been revered for centuries as the mother of all languages. It is a language that is deeply rooted in Indian culture and has been used to document a wide range of knowledge, including science. Many Sanskrit scriptures contain information about modern scientific concepts that are only being discovered and researched by modern scientists today. In this article, we will explore some of the modern scientific concepts found in Sanskrit scriptures and their relevance to today's world.

Ayurveda: Ayurveda, the ancient Indian system of medicine, is documented in Sanskrit scriptures. It contains detailed information about human anatomy, physiology, and treatment methods. Modern medicine is now researching Ayurvedic methods and using them in the treatment of various illnesses.

Yoga: Yoga, which originated in India, is a holistic approach to health and wellness that incorporates physical postures, breathing techniques, and meditation. Modern science has recognized the numerous benefits of practicing yoga, including improved physical health, mental well-being, and stress reduction.

Astronomy: Sanskrit scriptures contain detailed information about astronomy, including the movements of celestial bodies and the calculation of planetary positions. Modern astronomers are using this information to better understand the universe.

Mathematics: Sanskrit scriptures contain advanced mathematical concepts, including geometry, trigonometry, and algebra. These concepts have been used to solve complex mathematical problems that are still being studied today.

Physics: Sanskrit scriptures contain descriptions of atomic and subatomic particles, as well as concepts such as energy and matter. These concepts are still being studied by modern physicists.

Ecology: Sanskrit scriptures contain detailed descriptions of the natural world, including plants, animals, and ecosystems. This knowledge is now being used to develop sustainable methods of agriculture and protect the environment.

Linguistics: Sanskrit is a highly structured language with a complex grammar. Modern linguists are studying Sanskrit to better understand language structure and develop natural language processing algorithms.

Psychology: Sanskrit scriptures contain detailed descriptions of the human mind, including concepts such as consciousness, emotions, and mental health. This knowledge is now being used to develop modern psychological theories and therapies.

Robotics: Sanskrit scriptures contain descriptions of advanced machines and robotics. Modern scientists are using this knowledge to develop advanced robotics and artificial intelligence.

Genetics: Sanskrit scriptures contain descriptions of genetics and inheritance, including the concept of genes and their role in determining physical traits. Modern geneticists are using this knowledge to better understand genetics and develop treatments for genetic disorders.

In conclusion, Sanskrit scriptures contain a wealth of knowledge about modern scientific concepts that are still being researched and studied today. The value of Sanskrit in modern science is undeniable, and its study can lead to new insights and discoveries in various fields. As modern scientists continue to study and explore the knowledge contained in Sanskrit scriptures, it is clear that this ancient language will continue to play an important role in shaping the future of science.

Dec 19, 2022

रुद्राष्टकम् | Rudrashtakam with Hindi meaning | Rudrashtakam | रुद्राष्टकम् का अनुवाद

शिव उपासना
Shiv prayer rudrashtakm shlok meaning in hindi

आपके लिए रुद्राष्टकम का हिंदी अनुवाद निम्न पंक्तियों में लिखा गया हैं

Shiv Prayer Rudrashtak Shlok 1

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं 
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥1॥

Shiv Prayer Rudrashtak  Shlok  1  Meaning In Hindi

हे भगवन ईशान को मेरा प्रणाम ऐसे भगवान जो कि निर्वाण रूप हैं जो कि महान ॐ के दाता हैं जो सम्पूर्ण ब्रह्माण में व्यापत हैं जो अपने आपको धारण किये हुए हैं जिनके सामने गुण अवगुण का कोई महत्व नहीं, जिनका कोई विकल्प नहीं, जो निष्पक्ष हैं जिनका आकर आकाश के सामान हैं जिसे मापा नहीं जा सकता उनकी मैं उपासना करता हूँ |

Shiv Prayer Rudrashtak Shlok 2

निराकारमोङ्करमूलं तुरीयं
गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकालकालं कृपालं
गुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ॥२॥

Shiv Prayer Rudrashtak Shlok 2 Meaning In Hindi

जिनका कोई आकार नहीं, जो ॐ के मूल हैं, जिनका कोई राज्य नहीं, जो गिरी के वासी हैं, जो कि सभी ज्ञान, शब्द से परे हैं, जो कि कैलाश के स्वामी हैं, जिनका रूप भयावह हैं, जो कि काल के स्वामी हैं, जो उदार एवम् दयालु हैं, जो गुणों का खजाना हैं, जो पुरे संसार के परे हैं उनके सामने मैं नत मस्तक हूँ |

Shiv Prayer Rudrashtak Shlok 3

तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभिरं
मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥३॥

Shiv Prayer Rudrashtak Shlok 3 Meaning In Hindi

जो कि बर्फ के समान शील हैं, जिनका मुख सुंदर हैं, जो गौर रंग के हैं जो गहन चिंतन में हैं, जो सभी प्राणियों के मन में हैं, जिनका वैभव अपार हैं, जिनकी देह सुंदर हैं, जिनके मस्तक पर तेज हैं जिनकी जटाओ में लहलहारती गंगा हैं, जिनके चमकते हुए मस्तक पर चाँद हैं और जिनके कंठ पर सर्प का वास हैं |

Shiv Prayer Rudrashtak Shlok 4

चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ॥४॥


Shiv Prayer Rudrashtak Shlok 4 Meaning In Hindi

जिनके कानों में बालियाँ हैं, जिनकी सुन्दर भोहे और बड़ी-बड़ी आँखे हैं जिनके चेहरे पर सुख का भाव हैं जिनके कंठ में विष का वास हैं जो दयालु हैं, जिनके वस्त्र शेर की खाल हैं, जिनके गले में मुंड की माला हैं ऐसे प्रिय शंकर पुरे संसार के नाथ हैं उनको मैं पूजता हूँ |

Shiv Prayer Rudrashtak Shlok 5

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ।
त्र्यःशूलनिर्मूलनं शूलपाणिं
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥५॥

Shiv Prayer Rudrashtak Shlok 5 Meaning In Hindi

जो भयंकर हैं, जो परिपक्व साहसी हैं, जो श्रेष्ठ हैं अखंड है जो अजन्मे हैं जो सहस्त्र सूर्य के सामान प्रकाशवान हैं जिनके पास त्रिशूल हैं जिनका कोई मूल नहीं हैं जिनमे किसी भी मूल का नाश करने की शक्ति हैं ऐसे त्रिशूल धारी माँ भगवती के पति जो प्रेम से जीते जा सकते हैं उन्हें मैं वन्दन करता हूँ |

Shiv Prayer Rudrashtak Shlok 6

कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥६॥

Shiv Prayer Rudrashtak Shlok 6 Meaning In Hindi

जो काल के बंधे नहीं हैं, जो कल्याणकारी हैं, जो विनाशक भी हैं,जो हमेशा आशीर्वाद देते है और धर्म का साथ देते हैं , जो अधर्मी का नाश करते हैं, जो चित्त का आनंद हैं, जो जूनून हैं जो मुझसे खुश रहे ऐसे भगवान जो कामदेव नाशी हैं उन्हें मेरा प्रणाम |

Shiv Prayer Rudrashtak Shlok 7

न यावद् उमानाथपादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ॥७॥

Shiv Prayer Rudrashtak Shlok 7 Meaning In Hindi

जो यथावत नहीं हैं, ऐसे उमा पति के चरणों में कमल वन्दन करता हैं ऐसे भगवान को पूरे लोक के नर नारी  पूजते  हैं, जो सुख हैं, शांति हैं, जो सारे दुखो का नाश करते हैं जो सभी जगह वस् करते हैं |

Shiv Prayer Rudrashtak Shlok 8

न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् ।
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ॥८॥

Shiv Prayer Rudrashtak Shlok 8 Meaning In Hindi

मैं कुछ नहीं जानता, ना  योग , ना ध्यान हैं देव के सामने मेरा मस्तक झुकता हैं, सभी संसारिक कष्टों, दुःख दर्द से मेरी रक्षा करे. मेरी बुढ़ापे के कष्टों से से रक्षा करें | मैं सदा ऐसे शिव शम्भु को प्रणाम करता हूँ |

Shiv Prayer Rudrashtak Shlok 9

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥९॥

Shiv Prayer Rudrashtak Shlok 9 Meaning In Hindi

इस रुद्राष्टक को जो सच्चे भाव से पढ़ता हैं शम्भुनाथ उसकी सुनते हैं और आशीर्वाद देते है |

इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ।

महाकवि तुलसीदास जी का रुद्राष्टक समाप्त होता हैं |

मेरा जितना सामर्थ्य था मैंने यह कठिन अनुवाद किया अगर मुझसे कोई भी गलती हुई हैं तो क्षमा करे एवं मार्गदर्शन दे |
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Jun 22, 2022

Kissing related Sanskrit words | Kiss in Sanskrit 😘

😘 Sanskrit word for Kiss 😘


1. अधरपानम्—drinking the lips

2. अधररसपानम्—drinking nectar from the lips

3. अनुघ्राणम्—smelling (=kissing) repeatedly

4. अभिचुम्बनम्—touching with the face (=lips) on both sides

5. अवघ्रः—an act of smelling (=kissing) with determination

6. अवघ्राणम्—smelling (=kissing) with determination

7. आघ्राणम्—smelling (=kissing) all around

8. आचुम्बनम्—touching with the face (=lips) all around

9. आरेहणम्—licking all around

10. आस्यन्धयः/यी—he/she who drinks from the mouth (=a kisser)

11. उपघ्राणम्/उपशिङ्घनम्—smelling (=kissing) up-close

12. उपाघ्राणम्—smelling (=kissing) up-close from all sides

13. चुम्बनदानम्—the gift of a kiss

14. चुम्बनम्—touching with the face (=lips)

15. दशनोच्छिष्टम्/वदनोच्छिष्टम्—act in which something (=saliva) is left from the teeth/mouth

16. नातिविशदम्—[a kiss] that is not too obvious or apparent (=kissing discreetly)

17. निंसा—touching closely

18. निंसी/निंसिनी—he/she who touches closely (=a kisser)

19. निक्षः/निक्षा—he/she who pierces with the lips (=a kisser)

20. निक्षणम्—piercing [with the lips]

21. निपानम्—intensely drinking or sucking [with the lips]

22. निमित्तकम्—the cause [of सुरतिः]

23. नेत्रनिंसी/नेत्रनिंसिनी—he/she who kisses the eyes (=an eye-kisser)

24. परिघ्राणम्—smelling (=kissing) everywhere, covering with kisses (=kissing heartily or passionately)

25. परिचुम्बनम्—torching with the mouth everywhere, covering with kisses (=kissing heartily or passionately)

26. परिणिंसकः/परिणिंसिका—he/she who touches closely from all around (=a kisser)

27. परिणिंसा—touching closely from all around

28. पानम्—drinking [saliva]

29. पुष्पनिक्षः—he who kisses flowers (=a bee)

30. प्रणिंसा—touching closely with eminence

31. प्रणिक्षणम्—eminently piercing [with the lips]

32. मुखग्रहणम्—receiving somebody's face/mouth

33. मुखास्वादः—savoring somebody's face/mouth

34. रेहणम्—licking

35. विचुम्बनम्—a special kiss

36. विसर्गचुम्बनम्—a parting kiss

37. समाघ्राणम्—smelling (=kissing) properly from all sides

38. समुपघ्राणम्—smelling (=kissing) prop

39. साक्षतम्—a kiss without hurting (=a gentle kiss)  

Thank you for reading. 

Jan 3, 2022

संस्कृत भाषा का महत्व | संस्कृत भाषा की गरिमा | संस्कृत की विशिष्टता | संस्कृत भाषा के महत्व पर निबंध

देवभाषा संस्कृत की गहरी बातें

संस्कृत भाषा में 102078.5 करोड़ शब्दों का विशाल कोष है । इतना बड़ा तो क्या , इसके आसपास भी किसी भाषा का शब्दकोष नहीं है । कंप्यूटर और तकनीकी दृष्टि से अगले 100 वर्षों तक संसार इस शब्दकोष से लाभान्वित हो सकता है ।
कम से कम शब्दों से बड़ा से बड़ा वाक्य बनाया जा सकता है - इस देवभाषा में । यह एक अदभुत बात है ।
अमेरिका ने तो संस्कृत के अध्ययन के लिए एक विश्वविद्यालय बनाया है । नासा ने भी इस भाषा को जानने-समझने के लिए अलग से एक विभाग बनाया है ।
जुलाई 1987 की फोर्ब्स पत्रिका में छपा था कि कंप्यूटर के लिए संस्कृत भाषा सबसे ज्यादा उपयोगी और सरल है ।
देवभाषा संस्कृत दैनिक जीवन की सबसे श्रेष्ठतम भाषा है । नासा का कहना है कि इससे स्पष्ट रूप से समझाने वाली भाषा इस ब्रह्माण्ड में है ही नहीं ।
आर्यावर्त के भारतखण्ड में केवल उत्तराखण्ड प्रदेश में ही हमारी देवभाषा संस्कृत को राजकीय भाषा माना गया है ।
(हमारे लिए इससे दुःखद स्थिति और क्या हो सकती है !)
नासा के वैज्ञानिकों ने घोषणा की है कि अमेरिका में सन 2025 तक 6ठी  पीढी के लिए और सन 2034 तक 7वीं पीढी के लिए संस्कृत भाषा में विशिष्ट कंप्यूटर का निर्माण हो जाएगा । यह एक भाष्य क्रांति का सूत्रपात होगा कि  पूरा विश्व संस्कृत सीखने को लालायित हो जाएगा ।

आधुनिक विज्ञान में वेद, उपनिषद, श्रुति, स्मृति, पुराण, रामायण, महाभारत आदि संस्कृतीय महान ग्रंथों का सदुपयोग हो सकेगा ।  यह कथ्य रूस के राष्ट्रीय विश्वविद्यालय और नासा जैसी अनेक वैज्ञानिक संस्थाओं का कथन है । नासा ने तो 60 हजार ताड़पत्रों में लिखे संस्कृतीय श्लोकों का अध्ययन प्रारम्भ भी कर दिया है ।
विशेषज्ञों का कहना है कि देवभाषा संस्कृत के अध्ययन से मानव मस्तिष्क का तीव्रगति से विकास होता है । विद्यार्थी जीवन से ही विकास प्रारम्भ हो जाता है और गणित , विज्ञान जैसे जटिल विषय भी प्रिय लगने लगते हैं । स्मरणशक्ति का अदभुत विकास हो जाता है । लन्दन की प्रसिद्ध जेम्स जूनियर स्कूल ने तो संस्कृत को अनिवार्य भाषा की मान्यता दी है जिससे उस विद्यालय के विद्यार्थी प्रतिवर्ष श्रेष्ठता से आगे बढ़ने का कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं । इसी तरह आयरलैंड में भी संस्कृत भाषा को अनिवार्य रूप से पढ़ाया जा रहा है ।
एक अध्ययन के अनुसार देवभाषा संस्कृत की स्वरज्ञान की अदभुत विशिष्ठता के कारण शरीर के ऊर्जातंत्र का तीव्र विकास तो होता ही है , शरीर के बीमार या अविकसित तंतुओं को भी बल प्राप्त होता है । बीमारियों से लड़ने की क्षमता भी बढ़ती है । मस्तिष्क हमेशा स्थिर और जागृत रहता है ।
संस्कृत ही वह देवभाषा है जिसके एक एक शब्द के उच्चारण से मुखमुद्रा के भावों का प्रगटीकरण होता रहता है । इस कारण शरीर में रक्तप्रवाह (BP) , मधुमेह ( Diabetes) , कोलेस्ट्रॉल आदि दूषित रोगों को रोका जा सकता है । यह कथन अमेरिकन हिन्दू यूनिवर्सिटी ने एक गहन अध्ययन के बाद प्रकाशित की है ।
संस्कृत भाषा आश्चर्यजनक रूप से मानव के विचारों को शुद्ध और पवित्र करती है । रसायन , आध्यात्म , निरापदभाव , कला आदि विषयों पर सकारात्मक प्रभाव डालती है । प्रकृति के उत्थान और उत्पादन की सहायक है यह देवभाषा ।
इस देवभाषा में विश्व की प्रमुख सभ्यताओं ( सनातन , बौद्ध , पाली , जैन और प्राकृत ) के अनेकानेक ग्रन्थ लिखे गए हैं । किसी भी भाषा में इतनी सभ्यताओं के ग्रंथ नहीं लिखे गए हैं ।
जर्मनी की राष्ट्रीय यूनिवर्सिटी का कहना है कि भौगोलिक परिवर्तन और सूर्य की गति के आधार पर पंचाग ( कैलेंडर ) का निर्माण संस्कृत भाषा में ही हुआ है जो सिद्ध करता है कि यह पूर्णतया वैज्ञानिक भाषा है ।
इंग्लैंड में तो संस्कृत के श्रीचक्र  के आधार पर सुरक्षा के तरीकों पर अध्ययन हो रहा है ।
यही एक भाषा है जिसमें नित नए शब्दों का निर्माण होता रहता है । विख्यात व्याकरण ऋषि पाणिनी द्वारा रचित इसके तरीके अदभुत हैं । ऐसी व्यवस्थित व्याकरण , जिसमें भाषा के एक एक शब्द का विश्लेषण है , विश्व की किसी अन्य भाषा में नहीं है । महर्षि पाणिनी के पश्चात महर्षि वररुचि और महर्षि पतञ्जलि ने इस भाषा को और भी उन्नत बनाया ।
ऐसी हमारी देवभाषा का उसी की जन्मभूमि में  अनादर क्यों !!!
सादर नमन ।
#Sanskritwala 

Dec 8, 2021

भगवद गीता के बारे में | Bhagavad Geeta | श्रीमद भगवद गीता | Buy Bhagavad Gita online

भगवद्गीता के बारे में 


हिन्दू पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती का पर्व मनाया जाता है। 
इस बार ये पर्व 14 दिसम्बर 2021 मंगलवार , को है। 
एक-दूसरे के प्राणों के प्यासे कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध शुरू होने से पहले योगीराज भगवान श्रीकृष्ण ने 18 अक्षौहिणी सेना के बीच मोह में फंसे और कर्म से विमुख अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था।


श्रीकृष्ण ने अर्जुन को छंद रूप में यानी गाकर उपदेश दिया, इसलिए इसे गीता कहते हैं। 
चूंकि उपदेश देने वाले स्वयं भगवान थे, अत: इस ग्रंथ का नाम भगवद्गीता पड़ा। 
भगवद्गीता में कई विद्याओं का वर्णन है, जिनमें चार प्रमुख हैं- अभय विद्या, साम्य विद्या, ईश्वर विद्या और ब्रह्म विद्या। माना गया है कि अभय विद्या मृत्यु के भय को दूर करती है।
साम्य विद्या राग-द्वेष से छुटकारा दिलाकर जीव में समत्व भाव पैदा करती है। 
ईश्वर विद्या के प्रभाव से साधक अहंकार और गर्व के विकार से बचता है। 
ब्रह्म विद्या से अंतरात्मा में ब्रह्मभाव को जगाता है। 
गीता माहात्म्य पर श्रीकृष्ण ने पद्म पुराण में कहा है कि भवबंधन (जन्म-मरण) से मुक्ति के लिए गीता अकेले ही पर्याप्त ग्रंथ है। गीता का उद्देश्य ईश्वर का ज्ञान होना माना गया है।

स्वयं भगवान ने दिया है गीता का उपदेश

विश्व के किसी भी धर्म या संप्रदाय में किसी भी ग्रंथ की जयंती नहीं मनाई जाती। 
हिंदू धर्म में भी सिर्फ गीता जयंती मनाने की परंपरा पुरातन काल से चली आ रही है, क्योंकि अन्य ग्रंथ किसी मनुष्य द्वारा लिखे या संकलित किए गए हैं, जबकि गीता का जन्म स्वयं श्रीभगवान के श्रीमुख से हुआ है इसीलिए कहा गया है की - या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनि:सृता।।
श्रीगीताजी की उत्पत्ति धर्मक्षेत्र (कुरुक्षेत्र) में मार्गशीर्ष मास में शुक्लपक्ष की एकादशी को हुई थी। 
यह तिथि मोक्षदा एकादशी के नाम से विख्यात है। गीता एक सार्वभौम ग्रंथ है। यह किसी काल, धर्म, संप्रदाय या जाति विशेष के लिए नहीं अपितु संपूर्ण मानव जाति के लिए है। इसे स्वयं श्रीभगवान ने अर्जुन को निमित्त बनाकर कहा है इसलिए इस ग्रंथ में कहीं भी श्रीकृष्ण उवाच शब्द नहीं आया है बल्कि श्रीभगवानुवाच का प्रयोग किया गया है।


इसके छोटे-छोटे 18 अध्यायों में इतना सत्य, ज्ञान व गंभीर उपदेश है, जो मनुष्य मात्र को नीची से नीची दशा से उठाकर देवताओं के स्थान पर बैठाने की शक्ति रखते हैं।

निष्काम कर्म करने की शिक्षा देती है गीता 


महाभारत के अनुसार, जब कौरवों व पांडवों में युद्ध प्रारंभ होने वाला था। तब अर्जुन ने कौरवों के साथ भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य आदि श्रेष्ठ महानुभावों को देखकर तथा उनके प्रति स्नेह होने पर युद्ध करने से इंकार कर दिया था। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था, जिसे सुन अर्जुन ने न सिर्फ महाभारत युद्ध में भाग लिया अपितु उसे निर्णायक स्थिति तक पहुंचाया। 
गीता को आज भी हिंदू धर्म में बड़ा ही पवित्र ग्रंथ माना जाता है। गीता के माध्यम से ही श्रीकृष्ण ने संसार को धर्मानुसार कर्म करने की प्रेरणा दी। वास्तव में यह उपदेश भगवान श्रीकृष्ण कलियुग के मापदंड को ध्यान में रखते हुए ही दिया है। कुछ लोग गीता को वैराग्य का ग्रंथ समझते हैं जबकि गीता के उपदेश में जिस वैराग्य का वर्णन किया गया है वह एक कर्मयोगी का है। कर्म भी ऐसा हो जिसमें फल की इच्छा न हो अर्थात निष्काम कर्म।
गीता में यह कहा गया है कि अपने धर्म का पालन करना ही निष्काम योग है। इसका सीधा अर्थ है कि आप जो भी कार्य करें, पूरी तरह मन लगाकर तन्मयता से करें। फल की इच्छा न करें। अगर फल की अभिलाषा से कोई कार्य करेंगे तो वह सकाम कर्म कहलाएगा। गीता का उपदेश कर्मविहीन वैराग्य या निराशा से युक्त भक्ति में डूबना नहीं सिखाता, वह तो सदैव निष्काम कर्म करने की प्रेरणा देता है।

इस प्रकार श्रीमद भगवद गीताजी भारतीय संस्कृति का समग्र मानवजाति को एक बेहतरीन तौफा है यह कहना गलत नहीं होगा |

| धन्यवाद  |

Thank You, Keep Reading. 
#Sanskritwala

Dec 3, 2021

गोत्र क्या है ? गोत्र कितने है ?

गोत्र कितने है ?


ॐ 
आज हम अपनी संस्कृति की धरोहर के सामान गोत्र के बारे में जानेंगे | 
गोत्र या नि क्या ? What is Gotra ? गोत्र क्यों जरुरी है ? गोत्र कितने है ? गोत्र की क्या उपयुक्तता है ? गोत्र कैसे मालुम होता है ? इस सब बातो को आज हम ठीक तरीके से जानने का प्रयास करेंगे | 
सब से पहेल हम गोत्र कितने है इस के बारे में जानेंगे | 

१.अत्रि गोत्र, 
२.भृगुगोत्र, 
३.आंगिरस गोत्र, 
४.मुद्गल गोत्र, 
५.पातंजलि गोत्र, 
६.कौशिक गोत्र, 
७.मरीच गोत्र, 
८.च्यवन गोत्र, 
९.पुलह गोत्र,
१०.आष्टिषेण गोत्र, 
११.उत्पत्ति शाखा, 
१२.गौतम गोत्र,
१३.वशिष्ठ और संतान (क)पर वशिष्ठ गोत्र, (ख)अपर वशिष्ठ गोत्र, (ग)उत्तर वशिष्ठ गोत्र, (घ)
पूर्व वशिष्ठ गोत्र, (ड)दिवा वशिष्ठ गोत्र !!! 
१४.वात्स्यायन गोत्र, 
१५.बुधायन गोत्र, 
१६.माध्यन्दिनी गोत्र, 
१७.अज गोत्र, 
१८.वामदेव गोत्र, 
१९.शांकृत्य गोत्र, 
२०.आप्लवान गोत्र, 
२१.सौकालीन गोत्र, 
२२.सोपायन गोत्र, 
२३.गर्ग गोत्र, 
२४.सोपर्णि गोत्र, 
२५.शाखा, 
२६.मैत्रेय गोत्र, 
२७.पराशर गोत्र, 
२८.अंगिरा गोत्र, 
२९.क्रतु गोत्र, 
३०.अधमर्षण गोत्र,
३१.बुधायन गोत्र, 
३२.आष्टायन कौशिक गोत्र, 
३३.अग्निवेष भारद्वाज गोत्र, ३४.कौण्डिन्य गोत्र, 
३५.मित्रवरुण गोत्र, 
३६.कपिल गोत्र, 
३७.शक्ति गोत्र, 
३८.पौलस्त्य गोत्र, 
३९.दक्ष गोत्र, 
४०.सांख्यायन कौशिक गोत्र, ४१.जमदग्नि गोत्र, 
४२.कृष्णात्रेय गोत्र, 
४३.भार्गव गोत्र, 
४४.हारीत गोत्र, 
४५.धनञ्जय गोत्र, 
४६.पाराशर गोत्र,
 ४७.आत्रेय गोत्र, 
४८.पुलस्त्य गोत्र, 
४९.भारद्वाज गोत्र,
 ५०.कुत्स गोत्र, 
५१.शांडिल्य गोत्र, 
५२.भरद्वाज गोत्र, 
५३.कौत्स गोत्र, 
५४.कर्दम गोत्र, 
५५.पाणिनि गोत्र, 
५६.वत्स गोत्र, 
५७.विश्वामित्र गोत्र, 
५८.अगस्त्य गोत्र,
 ५९.कुश गोत्र,
 ६०.जमदग्नि कौशिक गोत्र, ६१.कुशिक गोत्र, 
६२. देवराज गोत्र, 
६३.धृत कौशिक गोत्र, 
६४.किंडव गोत्र, 
६५.कर्ण गोत्र, 
६६.जातुकर्ण गोत्र, 
६७.काश्यप गोत्र, 
६८.गोभिल गोत्र, 
६९.कश्यप गोत्र,
७०.सुनक गोत्र, 
७१.शाखाएं गोत्र, 
७२.कल्पिष गोत्र, 
७३.मनु गोत्र,
 ७४.माण्डब्य गोत्र, 
७५.अम्बरीष गोत्र, 
७६.उपलभ्य गोत्र, 
७७.व्याघ्रपाद गोत्र, 
७८.जावाल गोत्र, 
७९.धौम्य गोत्र, 
८०.यागवल्क्य गोत्र, 
८१.और्व गोत्र, 
८२.दृढ़ गोत्र, 
८३.उद्वाह गोत्र, 
८४.रोहित गोत्र,
८५.सुपर्ण गोत्र, 
८६.गालिब गोत्र, 
८७.वशिष्ठ गोत्र, 
८८.मार्कण्डेय गोत्र, 
८९.अनावृक गोत्र, 
९०.आपस्तम्ब गोत्र, 
९१.उत्पत्ति शाखा गोत्र, 
९२.यास्क गोत्र, 
९३.वीतहब्य गोत्र, 
९४.वासुकि गोत्र, 
९५.दालभ्य गोत्र, 
९६.आयास्य गोत्र, 
९७.लौंगाक्षि गोत्र, 
९८.चित्र गोत्र, 
९९.विष्णु गोत्र, 
१००.शौनक गोत्र, 
१०१.पंचशाखा गोत्र, 
१०२.सावर्णि गोत्र, 
१०३.कात्यायन गोत्र, 
१०४.कंचन गोत्र, 
१०५.अलम्पायन गोत्र, 
१०६.अव्यय गोत्र, 
१०७.विल्च गोत्र, 
१०८.शांकल्य गोत्र, 
१०९.उद्दालक गोत्र, 
११०.जैमिनी गोत्र, 
१११.उपमन्यु गोत्र, 
११२.उतथ्य गोत्र, 
११३.आसुरि गोत्र, 
११४.अनूप गोत्र, 
११५.आश्वलायन गोत्र 

कुल संख्या १०८  ही है | लेकिन इनकी छोटी-छोटी ७ शाखा और हुई है ! 
इस प्रकार कुल मिलाकर इनकी पुरी संख्या ११५ है !

॥जयतु संस्कृतम् ॥

Nov 6, 2021

हिन्दुओं के रीति रिवाज तथा मान्यताएं | Hindu Rights Rituals Customs and Traditions | Hindu Manyatae

हिन्दुओं के रीत रिवाज तथा मान्यताए 

हेल्लो डिअर रीडर्स !

आज हम एक अनूठे पुस्तक के बारे में जानेंगे | इस पुस्तक का नाम है हिन्दुओ के रीत रिवाज तथा मान्यताए | दोस्तों यह पुस्तक हिन्दुओ के रीत रिवाज एवं मान्यताए अंग्रेजी में भी उपलब्ध है जिसका नाम है Hindu Rights Rituals Customs and Traditions.  हिन्दुओ के रीत रिवाज एवं मान्यताए पुस्तक में हिन्दूओ के सदीओ पुराने जो रीत रिवाज एवं मान्यताए है इसकी धार्मिक एवं पौराणिक आधार पे चर्चा की गई है | 

डॉ. चंद्रप्रकाश गंगराडे द्वारा लिखित यह पुस्तक सभी हिन्दुओ के पास होनी चाहिए | यह पुस्तक हिन्दुओ के रीत रिवाज तथा मान्यताए में निम्नलिखित विषयो का उल्लेख किया गया है | 

  • सर्व प्रथम गणेशजी का पूजन क्यों किया जाता है ?
  • पारद शिवलिंग एवं शालिग्राम पूजन क्यों ?
  • हनुमानजी को सिन्दूर क्यों चढ़ाया जाता है ?
  • सूर्यग्रहण एवं चंद्रग्रहण के समय भोजन क्यों नहीं करना चाहिए ?
  • गंगा इतनी विशेष नदी क्यों है ?
  • हिन्दू धर्ममे संस्कारों का क्या महत्व है ?
  • गर्भाधान संस्कार कायो करना चाहिए ?
  • यज्ञोपवीत संस्कार क्यों करना चाहिए ?
  • सरस्वती को ही ज्ञान की देवी क्यों माना जाता है ?
  • शिखा का क्या महत्व है ?
  • इस अद्भुत पुस्तक को आज ही खरीदने के लिए यहाँ पर क्लिक करे | 
  • शौच के समय जनेऊ कान पे लपेटना क्यों जरुरी है ?
  • मृतक का तर्पण क्यों करना चाहिए ?
  • विवाह में सात फेरे क्यों ?
  • सगोत्र विवाह करना वर्जित क्यों है ?
  • पूजा से पहले स्नान की क्या आवश्यकता है ?
  • ब्राह्ममुहूर्त में उठने के फायदे ?
  • पूजा पाठ में दीपक जलाना क्यों आवश्यक है ? 
  • पुनर्जन्म की मान्यता में विश्वास क्यों ?
  • शुभ कार्यो में पूर्व दिशा में ही मुख क्यों रखते है ?
  • पूजा में नारियल क्यों प्रयोग किया जाता है ? 
  • देवताओं की मूर्ति की परिक्रामा क्यों की जाती है ?
  • जल अर्घ्य क्यों देना चाहिए ?
  • तुलसी का विशेष महत्व क्यों ?
  • पीपल के पेड़ का पूजन क्यों किया जाता है ?
  • तिलक क्यों किया जाता है ?
  • गायत्री मंत्र की सब से अधिक मान्यता क्यों है ?
  • यज्ञ में आहुति के साथ स्वाहा क्यों बोलते है ?
  • मंत्रो की शक्ति में विश्वास क्यों करे ?
  • ब्राह्मण को ही सर्वाधिक महत्व क्यों ?
  • जाती पाती का भेदभाव अनुचित क्यों है ?
  • मंदिर में घंटा क्यों बजाते है ?
  • सत्यनारायण की कथा का महत्व क्या है ? 
  • सुन्दर काण्ड का धार्मिक महत्व क्या है ?
  • दीपावली पर लक्ष्मी पूजन क्यों ?
  • मंगल सूत्र क्यों धारण करे ?
  • इस अद्भुत पुस्तक को आज ही खरीदने के लिए यहाँ पर क्लिक करे |
और इस के जैसे ही कई प्रश्न जो हमारे मन मस्तिष्क में घूमते रहते है इस के शास्त्रिक्त और वैज्ञानिक द्रष्टिकोण से इस पुस्तक में बहोत ही अच्छा समजाया गया है | 

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Sep 22, 2021

Gayatri Mantra | Gayatri Mantra Meaning | Sanskrit Mantra Meaning

गायत्री की महिमा


वेदों, उपनिषदों, पुराणों, स्मृतियों आदि सभी शास्त्रों में गायत्री मन्त्र के जप का आदेश दिया है। यहां गायत्री जप के सम्बन्ध में 'देवी भागवत' के ये श्लोक देखिये- 

गायत्र्युपासना नित्या सर्ववेदै: समीरिता।
यया विना त्वध: पातो ब्राह्मणस्यास्ति सर्वथा।।८९।।

तावता कृतकृत्यत्वं नान्यापेक्षा द्विजस्य हि।
गायत्रीमात्रनिष्णातो द्विजो मोक्षमवाप्नुयात्।।९०।।

"गायत्री ही की उपासना सनातन है। सब वेदों में इसी की उपासना और शिक्षा दी गई है, जिसके बिना ब्राह्मण का सर्वथा अध:-पतन हो जाता है।।८९।। 
द्विजमात्र कि लिए इतने से ही कृतकृत्यता है। अन्य किसी उपासना और शिक्षा की आवश्यकता नहीं। गायत्रीमात्र में निष्णात द्विज मोक्ष को प्राप्त होता है।।९०।।"

गायत्री-मन्त्र को जो गुरु-मन्त्र कहा गया है, तो इसमें विशेष तथ्य है। चारों वेदों में इसका वर्णन है। 
ऋग्वेद में ६/६२/१० का मन्त्र गायत्री मन्त्र ही है। सामवेद के १३/३/३ उत्तरार्चिक में और यजुर्वेद में दो-तीन स्थानों में गुरुमन्त्र का आदेश है। ३/३५, ३०/२ और ३६/३ पर अथर्ववेद में तो यह सारा रहस्य ही खोल दिया है कि यह वेद-माता, गायत्री-माता, द्विजों को पवित्र करनेवाली, आयु, स्वास्थ्य, सन्तान, पशु, धन, ऐश्वर्य, ब्रह्मवर्चस् देनेवाली और ईश्वर दर्शन करानेवाली है। छान्दोग्योपनिषद् ने भी इसकी महिमा का गायन किया है।
बादरायण के ब्रह्मसूत्र १/१/२५ पर शारीरिक भाष्य में श्री शंकराचार्य जी ने लिखा है,"गायत्री-मन्त्र के जप से ब्रह्म की प्राप्ति होती है।"

भगवान् मनु ने यह आदेश दिया है-"तीन वर्ष तक साधनों के साथ गायत्री का जप करते रहने से जप-कर्त्ता को परब्रह्म की प्राप्ति होती है।"

योऽधीतेऽहन्यहन्येतांस्त्रीणि वर्षाण्यतन्द्रित:।
स ब्रह्म परमभ्येति वायुभूत: खमूर्तिमान्।। -मनु० २/८२

इसी प्रकार महाभारत के भीष्मपर्व ४/३८ में और मनुस्मृति के दूसरे अध्याय के अन्य श्लोकों में भी गायत्री-मंत्र की महानता प्रकट की गई है।

महर्षि व्यास का कथन है,"पुष्पों का सार मधु है, दूध का सार घृत है और चारों वेदों का सार गायत्री है। गंगा शरीर के मल धो डालती है और गायत्री-गंगा आत्मा को पवित्र कर देती है।"
अत्रि ऋषि का यह कथन बड़ा मार्मिक है-"गायत्री आत्मा का परम शोधन करनेवाली है।"

महर्षि स्वामी दयानन्द जी महाराज ने 'सत्यार्थप्रकाश' के तृतीय समुल्लास में मनु भगवान् का एक श्लोक देकर यह आदेश किया है-
"जंगल में अर्थात् एकान्त देश में जा, सावधान होकर जल के समीप स्थित होके नित्य-कर्म को करता हुआ सावित्री अर्थात् गायत्री मन्त्र का उच्चारण, अर्थ-ज्ञान और उसके अनुसार अपने चाल-चलन को करे, परन्तु यह जप मन से करना उत्तम है।"

चरक ऋषि ने 'चरक-संहिता' में यह कहा है कि "जो ब्रह्मचर्य-सहित गायत्री की उपासना करता है और आँवले के ताजा (वृक्ष से अभी-अभी तोड़े हुए) फलों के रस का सेवन करता है, वह दीर्घ-जीवी होता है।"

य एतां वेद गायत्रीं पुण्यां सर्वगुणान्विताम्।
तत्त्वेन भरतश्रेष्ठ स लोके न प्रणश्यति ।।  -महाभारत, भीष्मपर्व अ० ४ श्लोक १६

पं० रामनारायणदत्त शास्त्री पाण्डेय 'राम' कृत अनुवाद- "भरतश्रेष्ठ! जो लोक में स्थित इस सर्वगुणसम्पन्न पुण्यमयी गायत्री को यथार्थ रूप से जानता है वह कभी नष्ट नहीं होता है।"

चतुर्णामपि वर्णानामाश्रमस्य विशेषत:।
करोति सततं शान्तिं सावित्रीमुत्तमां पठन्।। - महाभारत, अनुशासनपर्व, अ० १५० श्लोक ७०

"जो उत्तम गायत्री मन्त्र का जप करता है, वह पुरुष चारों वर्णों और विशेषत: चारों आश्रमों में सदा शान्ति स्थापन करता है।"

या वै सा गायत्रीयं वाव सा येयं पृथिव्यस्यां हीद्ं सर्व भूतं प्रतिष्ठितमेतामेव नातिशीयते।  -छान्दोग्योपनिषद् ३/१२/२

"निश्चय से जो पृथिवी है, निश्चय यह वह गायत्री है। जो यह इस पुरुष में शरीर है। इसी में ये प्राण प्रतिष्ठित है। इसी शरीर को ये प्राण नहीं लांघते।"
'गायत्री-मंजरी' में तो गायत्री ही को सब-कुछ वर्णन कर दिया गया है और लिखा है-

भूलोकस्यास्य गायत्री कामधेनुर्मता बुधै:।
लोक आश्रयणेनामुं सर्वमेवाधिगच्छति।।२९।।

"विद्वानों ने गायत्री को भूलोक की कामधेनु माना है, संसार इसका आश्रय लेकर सब-कुछ प्राप्त कर लेता है।"
स्मृतियों में गायत्री का वर्णन कुछ इस प्रकार से है-

ब्रह्मचारी निराहार: सर्वभूतहिते रत:।
गायत्र्या लक्षजाप्येन सर्वपापै: प्रमुच्यते।। -संवर्तस्मृति:, श्लोक २१९

जो ब्रह्मचारी निराहार सब प्राणियों के कल्याण के लिए गायत्री को एक लाख जपता है वह सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है।

गायत्रीं यस्तु विप्रो वै जपेत नियत: सदा।
स याति परमं स्थानं वायुभूत: खमूर्तिमान्।।
                   -संवर्तस्मृति:, श्लोक २२२

जो ब्राह्मण जितेन्द्रिय होकर सर्वदा गायत्री का जप करता है वह वायु और आकाशरूप हो परमस्थान (मोक्ष) को प्राप्त करता है।

सहस्त्रपरमां देवीं शतमध्यां दशावराम्।
गायत्रीं यो जपेद्विप्रो न स पापेन लिप्यते।।
                   -अत्रिस्मृति:, अ० २, श्लोक ९

जो ब्राह्मण गायत्री को १११० बार जपता है वह पापों से लिप्त नहीं होता।

सर्वेषां जप्यसूक्तानामुचां च यजुषां तथा।
साम्नां वैकाक्षरादीनां गायत्रीं परमो जप:।।
            -बृहत्पराशरस्मृति:, अध्याय ३, श्लोक ४

जप करने योग्य सब सूक्तों में वैसा ही ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद के और एक अक्षर आदि के मध्य में गायत्री जप श्रेष्ठ है।
एकाक्षरेअपि विप्रस्य गायत्र्या अपि पार्वति।
                 -गायत्री तन्त्रम् (तृतीय पटल:)

गायत्री के एक अक्षर को जाननेवाले ब्राह्मण को नमस्कार है।
गायत्रीरहितो विप्र: स एव पूर्वकुक्कुरः ।।१४६।।
                -गायत्रीतन्त्रम् (तृतीय पटल:)

गायत्रीमन्त्र से रहित ब्राह्मण प्रत्येक जन्म में कुक्कुर होकर हड्डी खाता है।
पुराणों ने भी गायत्री की महिमा का गुणगान गाया है-
तावताकृतकृत्यत्वं नान्यापेक्षा द्विजस्य हि।
गायत्रीमात्रनिष्णातो द्विजो मोक्षमवाप्नुयात्।।९०।।
      -श्रीमद्देवीभागवते महापुराणे, द्वादशस्कन्धे, अध्याय ८

केवल गायत्रीमन्त्र को जानने में दक्ष द्विज मोक्ष को प्राप्त होता है। इसके जप करने से ही सब कर्त्तव्य पूर्ण हो जाते हैं। द्विज को दूसरे कर्मों की अपेक्षा नहीं है।
एकाक्षरं परं ब्रह्म प्राणायाम: परन्तप:।
सावित्र्यास्तु परन्नास्ति मौनात् सत्यं विशिष्यते।।
               -अग्निपुराणे, २१५ अध्याय, श्लो० ५

एकाक्षर (ओ३म्) पर ब्रह्म है। प्राणायाम परम तप है। सावित्री (गायत्री) से उत्तम दूसरा मन्त्र नहीं है, मौन से सत्यवाणी श्रेष्ठ है।
गयकं त्रायते पाताद् गायत्रीत्युच्यते हि सा।
  -श्री शिवमहापुराणे विद्येश्वरसंहितायाम् अ० १५ श्लोक १६

गान करनेवाले का पाप से रक्षा करती है, इससे यह गायत्री कहलाती है।
गायत्री छन्दसां माता माता लोकस्य जाह्नवी।
उभे ते सर्वपापानां नाशकारणतां गते।।६३।।
            - नारद-पुराण अध्याय ६
ऋ० कु० रामचन्द्र शर्मा सम्पादक 'सनातनधर्म पताका' कृत अनुवाद-
गायत्री छन्दों की माता है और गंगा लोकों की माता है, ये दोनों सब पापों के नाश की कारण हैं।

गायत्री वेदजननी गायत्री ब्राह्मणप्रसू:।
गातारं त्रायते यस्माद् गायत्री तेन गीयते।
       -स्कन्दपुराणम् ४ काशीखण्डे अ० ९, श्लोक ५३
गायत्री वेद की माता व गायत्री ब्राह्मणप्रसू: है। यह शरीर की रक्षा करती है इसलिए इसे गायत्री कहते हैं।

श्री पं० मदनमोहन जी मालवीय कहा करते थे कि "गायत्री-मन्त्र एक अनुपम रत्न है। गायत्री से बुद्धि पवित्र होती है और आत्मा में ईश्वर का प्रकाश आता है। गायत्री में ईश्वर-परायणता का भाव उत्पन्न करने की शक्ति है।"
माण्डले (बर्मा) जेल की काल-कोठरी में बैठकर 'गीता-रहस्य' लिखने वाले बाल गङ्गाधर तिलक ने लिखा था- "गायत्री मन्त्र के अन्दर यह भावना विद्यमान है कि वह कुमार्ग छुड़ाकर सन्मार्ग पर चला दे।"
महात्मा गांधी तो गायत्री-मन्त्र के निरन्तर जप को रोगियों तथा आत्मिक उन्नति चाहने वालों के लिए बहुत उपयोगी बताया करते थे।

महर्षि स्वामी दयानन्द जी के जीवन में कई बार ऐसा हुआ कि उन्होंने चित्त को एकाग्र तथा बुद्धि को निर्मल बनाने के लिए गायत्री-मन्त्र का जप बतलाया। इतना बड़ा महत्त्व रखनेवाला यह गुरु-मन्त्र है।
गायत्री-मन्त्र यह है-
ओ३म् भूर्भुवः स्व:। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।

।।ओ३म्।।

Sep 18, 2021

गणित शास्त्र के विश्व के सबसे प्राचीन विद्वान - स्वामि ज्येष्ठदेव

 स्वामि ज्येष्ठदेव 

प्राचीन भारत के गणित विद्या के प्रखर पण्डित विद्वान स्वामि ज्येष्ठदेवजी (Swami Jyeshth Dev) के बारे मे आज बात करनी है ।

हमे न्यूटन Newton का नाम पता है परंतु स्वामी ज्येष्ठदेव या माधवन (Madhavan) का नही, क्यों कि हमे बचपन मे ही सिर्फ न्यूटन के बारे में पढ़ाया गया है । अभी तक हमे यही पढ़ाया गया है कि न्यूटन जैसे महान वैज्ञानिक ही केल्क्युलस , खगोल विज्ञान और गुरुत्वाकर्षण के जनक है । 
लेकिन वास्तविकता यह है कि इन सभी विज्ञानियों से कई साल पूर्व पंद्रहवीं सदी में दक्षिण भारत के स्वामी ज्येष्ठदेव ने ताड़पत्रों पर गणित के ये तमाम सूत्र लिखे है । 
इन मे से कुछ सूत्र ऐसे भी है जो उन्हों ने अपने गुरुओं से सीखे थे । यानी गणित शास्त्र का यह ज्ञान उन से पहले भी प्रचलित था लेकिन लिखित रूप में नही था । 

"मैथेमेटिक्स इन इंडिया" पुस्तक के लेखक किम प्लाफकर लिखते है कि, "तथ्य यही है कि सन 1660 तक यूरोप में गणित या केल्क्युलस कोई नही जानता था । जेम्स ग्रेगरी सबसे पहले गणितीय सूत्र लेकर आये थे । 

जब कि सुदूर दक्षिण भारत के एक छोटे से गाँव मे स्वामी ज्येष्ठदेव ताड़पत्रों पर केल्क्युलस , त्रिकोणमिति के ऐसे ऐसे सूत्र और कठिनतम गणितीय व्याख्या को संभवित हल के साथ लिखकर रखे थे, जो पढ़कर हैरानी होती है ।

इस प्रकार चार्ल्स व्हिश नामक गणितज्ञ लिखते है कि....
"मैं पूरे विश्वास से कह सकता हूँ कि शून्य और अनंत कि गणितीय श्रृंखला का उद्गम स्थान केरल का मालाबार क्षेत्र है ।" 

स्वामी ज्येष्ठदेव द्वारा लिखे गए इस ग्रंथका नाम है "युक्तिभाष्य" , जिसके पंद्रह अध्याय और सेंकडो पृष्ठ है ।
यह पूरा ग्रंथ वास्तव में चौदहवीं शताब्दी में भारत के गणितीय ज्ञान का एक संकलन है जिसे संगम ग्राम के तत्कालीन प्रसिद्ध गणितज्ञ स्वामी माधवन की टीम ने तैयार किया है ।
स्वामी माधवन का यह कार्य समय की धूल में दब ही जाता यदि स्वामी ज्येष्ठदेव जैसे शिष्यो ने उसे ताड़पत्रो पर उस समय की द्रविड़ भाषा (जो अब मलयालम है)  में न लिखा होता । 
इसके बाद लगभग 200 वर्षो तक स्मृति परंपरा बहुत ही प्रचलित थी इसलिये सम्पूर्ण लेखन कर के एक रिकॉर्ड रखने में लोग विश्वास नही करते थे । 
जिसका नतीजा हमे आज भुगतना पड़ता है ।
अमूमन संस्कृत भाषा के प्राचीन आविष्कार हमे पश्चिमी आविष्कार के रूप में परोसा जा रहा है और हम उत्साहित हो कर के मजे भी ले रहे है ।

ज्योर्जटाउन विश्व विद्यालय के प्रोफेसर होमर व्हाइट लिखते है कि सम्भवतः पंद्रहवी सदी का गणित का यह ज्ञान धीरे धीरे इसलिए खो गया क्यो की कठिन गणितीय गणनाओं का अधिकांश उपयोग खगोल विज्ञान एवं नक्षत्रोकि गति इत्यादि के लिए होता था । सामान्य जनता के लिए यह अधिक उपयोगी नही था । इस के अलावा जब भारत के उन ऋषियों ने दशमलव (Decimal) के बाद ग्यारह अंको तक कि गणना एकदम सटीक निकाल ली थी , इसलिए अब गणितज्ञों के पास अब करने के लिए कुछ बचा ही नही था । 
ज्येष्ठदेव लिखित इस ज्ञान के लगभग लुप्तप्राय होने के सौ वर्षों के बाद पश्चिमी विद्वानों ने इसका अभ्यास 1700 से 1830 के बीच किया । चार्ल्स व्हिश ने "युक्तिभाष्य" से संबंधित अपना एक पेपर 'रॉयल एशियाटिक सोसायटी ऑफ ग्रेट ब्रिटेन एन्ड आयरलैंड' की पत्रिका में छपवाया ।

चार्ल्स व्हिश ईस्ट इंडिया कंपनी के मालाबार क्षेत्र में काम करते थे जो आगे चलकर जज भी बने । लेकिन साथ ही समय मिलने पर चार्ल्स ने भारतीय ग्रंथो का पठन मनन जारी रखा । व्हिश ने ही सब से पहले यूरोप को सबूतों के साथ "युक्तिभाष्य" के बारे में बताया था। वरना इससे पहले यूरोप के सभी विद्वान भारत की किसी भी ज्ञान या उपलब्धि को नकार देते थे । और भारत को साँपो, उल्लुओं और घने जंगलों वाला खतरनाक देश ही मानते थे । 
ईस्ट इंडिया कंपनी के एक वरिष्ठ कर्मचारी जॉन वारेन ने एक जगह लिखा है कि "हिन्दुओं का ज्यामितीय और खगोलीय ज्ञान अद्भुत था । यहा तक कि ठेठ ग्रामीण इलाकों के अनपढ़ व्यक्ति को मैने कई कठिन गणितीय गणनाएं मुंहजबानी करते देखा है ।"

साभार - डॉ जयेन्द्र नारंग 

Mar 22, 2021

संस्कृत में रोजगार की आशाए ।

संस्कृत अध्ययन के बाद रोजगारी की बहोत ही अच्छी आशाए की जा सकती है । संस्कृत अध्ययन कर के सभी युवा रोज़गारी प्राप्त कर सकता है । संस्कृत पढ़ के भी अच्छी नौकरी मिल सकती है ।


समाज में पूर्वाग्रह के कारण आमतौर पर यह माना जाता है की संस्कृत भाषा का अध्ययन करने के बाद रोजगार की बहुत कम संभावनाएं शेष रहती है. यह धारणा तथ्यहीन होने के साथ-साथ समाज की अपरिपक्वता का उदहारण भी है. संस्कृत भाषा एवं विषय के अध्ययन के पश्चात् युवाओं के लिए रोजगार के अनेक अवसर उपलब्ध हैं, जिनके बारे में विद्यार्थिओं और अभिभावकों को जानकारी होना अति आवश्यक है, तभी वे संस्कृत भाषा के अध्ययन की ओर अभिमुख होंगे. इसी दृष्टि से संस्कृत भाषा के अध्ययन के पश्चात् प्राप्त होने वाले रोजगार के अवसरों की यहाँ पर चर्चा की जा रही है. ये अवसर सरकारी, निजी और सामाजिक सभी क्षेत्रों में मौजूद हैं.

सरकारी क्षेत्र –

प्रशासनिक सेवा -

यह सेवा भारत की सबसे प्रतिष्ठित सेवाओं में एक है, जिसके प्रति युवाओं का रुझान सबसे अधिक होता है. पद एवं वेतनमान दोनों स्तरों पर इस सेवा में उच्च स्तर तक पहुंचा जा सकता है. केन्द्रीय स्तर पर संघ लोक सेवा आयोग एवं राज्य स्तर पर राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा इसके लिए प्रतिवर्ष रिक्तियां निकाली जाती हैं. जो युवा संस्कृत से स्नातक हैं, वे इसके लिए आवेदन कर सकते हैं.

प्राथमिक अध्यापक

प्राथमिक स्तर पर अध्यापन के लिए देश भर में शिक्षकों की आवश्यकता रहती है, किसी राज्य में बारहवीं कक्षा तो कहीं स्नातक कक्षा उत्तीर्ण अभ्यर्थी शिक्षक-प्रशिक्षण के पात्र होते हैं. इस प्रशिक्षण के पश्चात् ही प्राथमिक स्तर पर अध्यापन के लिए पात्रता सुनिश्चित होती है. जिन छात्रों ने संस्कृत विषय के साथ विशारद या शास्त्री परीक्षा उत्तीर्ण की है, वे भी इस प्रशिक्षण के लिए पात्र होते हैं. राज्यानुसार प्रशिक्षण एवं भर्ती के नियम अलग-अलग हैं.

प्रशिक्षित स्नातक अध्यापक

देश भर में माध्यमिक विद्यालयों में कहीं अनिवार्य और कहीं ऐच्छिक विषय के रूप में संस्कृत विषय का अध्यापन किया जाता है, जिसमें पढ़ाने वाले प्रशिक्षित अध्यापकों का चयन राज्य भर्ती बोर्ड के माध्यम से होता है. संस्कृत से स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण और अध्यापन में प्रशिक्षण प्राप्त अभ्यर्थी इसके लिए पात्र होते हैं. विशेष विवरण एवं रिक्तियों की अद्यतन सूचना अकादमी की वेबसाइट पर उपलब्ध है .

प्रवक्ता

देश भर में उच्च माध्यमिक विद्यालयों में ऐच्छिक विषय के रूप में संस्कृत का अध्यापन किया जाता है, जिसमें अध्यापन करने वाले प्रवक्ताओं का चयन केंद्र एवं राज्य भर्ती बोर्ड के माध्यम से होता है. संस्कृत विषय से परास्नातक परीक्षा उत्तीर्ण अभ्यर्थी इसके लिए पात्र होते हैं. विशेष विवरण एवं रिक्तियों की अद्यतन सूचना अकादमी की वेबसाइट पर उपलब्ध है.

सहायक व्याख्याता

देश भर के केन्द्रीय विश्वविद्यालयों एवं राज्य विश्वविद्यालयों में ऐच्छिक विषय के रूप में संस्कृत का अध्यापन किया जाता है, जिसमें अध्यापन करने वाले सहायक व्याख्याताओं का चयन विश्वविद्यालय अथवा राज्य भर्ती बोर्ड के माध्यम से होता है. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग एवं राज्य विश्वविद्यालयों द्वारा संचालित राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा/कनिष्ठ शोध अध्येतावृत्ति परीक्षा उत्तीर्ण छात्र इसमें चयन के लिए पात्र होते हैं. विशेष विवरण एवं रिक्तियों की अद्यतन सूचना अकादमी की वेबसाइट पर उपलब्ध है.

अनुसन्धान सहायक -

संस्कृत में शोध कार्य करने वाले विद्यार्थियों की सहायता के लिए सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्र के शोध-संस्थान अपने यहाँ अनुसन्धान सहायकों की नियुक्ति करते हैं. इस पद के लिए अनिवार्य योग्यता संस्कृत विषय में परास्नातक अथवा विद्यावारिधि है. ये नियुक्तियाँ कहीं-कहीं पर वेतनमान और कहीं पर निश्चित मानदेय पर की जाती हैं. विशेष विवरण एवं रिक्तियों की अद्यतन सूचना अकादमी की वेबसाइट पर उपलब्ध है.

सेना में धर्मगुरु

भारतीय सेना की तीनों शाखाओं में अधिकारी स्तर का धर्मगुरु का पद होता है. जिन छात्रों ने संस्कृत विषय के साथ स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की है तथा निर्धारित शारीरिक मानदण्ड को पूरा करते हैं, वे इस परीक्षा में बैठने के लिए पात्र होते हैं. सेना के भर्ती बोर्ड द्वारा समय समय-समय पर इस पद हेतु रिक्तियां निकाली जाती हैं. विशेष विवरण एवं रिक्तियों की अद्यतन सूचना अकादमी की वेबसाइट पर उपलब्ध है.

अनुवादक-

सरकारी प्रतिष्ठान और सामाजिक क्षेत्र के कुछ उपक्रमों में अनुवादक का पद होता है, विभिन्न भाषाओं में आये पत्रों तथा अन्य साहित्य के अनुवाद कार्य के लिए इस पद पर नियुक्ति की जाती है. स्नातक स्तर पर संस्कृत का अध्ययन तथा अनुवाद में डिप्लोमा प्राप्त करने वाले छात्र इसमें आवेदन करने के लिए अर्ह होते हैं. इस पद के लिए माध्यमिक विद्यालयों के अध्यापकों के बराबर ही वेतनमान निर्धारित होता है.

योग शिक्षक

आज दुनियाँ भर में जिस प्रकार स्वास्थ्य और योग के प्रति जागरूकता बढ़ रही है, उससे योग प्रशिक्षकों की मांग भी दिनों-दिन बढ़ती जा रही है. संस्कृत के जिन स्नातकों ने गुरुकुल में योग का अभ्यास किया है और योगशिक्षा में कोई उपाधि प्राप्त की है, वे इस क्षेत्र में आसानी से रोजगार पा सकते हैं. सरकारी विद्यालयों एवं गैर सरकारी उपक्रमों में योग प्रशिक्षितों के लिए पर्याप्त मात्रा में रिक्तियां निकलती रहती हैं. आजकल बहुराष्ट्रीय संस्थाएं भी योग प्रशिक्षकों की सेवाएँ लेने लगीं हैं.

पत्रकार

पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है. भारत में यह फलता-फूलता उद्योग है, जो युवाओं के लिए न केवल रोजगार के अवसर उपलब्ध करता है, अपितु चुनौतीपूर्ण कार्यों के माध्यम से यश और प्रतिष्ठा भी प्रदान करता है. जिन छात्रों ने संस्कृत में स्नातक उपाधि प्राप्त की है तथा पत्रकारिता में प्रशिक्षण लिया है वे इस क्षेत्र में कार्य के लिए पात्र होते हैं. भाषा पर मजबूत पकड़ के कारण संस्कृत के छात्रों को अन्य प्रतियोगियों की अपेक्षा वरीयता प्राप्त होती है. सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में कार्य के अनेक अवसरों के साथ वेतन व सुविधाओं की यहाँ कोई सीमा नहीं होती है.

सम्पादक

किसी पुस्तक, पत्र–पत्रिका के प्रकाशन में सम्पादक की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. जो छात्र भाषा व साहित्य आदि की अच्छी समझ रखते हैं, वे इस चुनौतीपूर्ण कार्य के लिए अर्ह होते हैं. हिन्दीभाषी क्षेत्र में पत्र-पत्रिका या पुस्तकों के प्रकाशन संस्थानों में सम्पादक का कार्य करने के लिए संस्कृत के अध्येताओं को वरीयता दी जाती है. इस क्षेत्र में कार्य करने के लिए सरकारी और निजी दोनों क्षेत्र में अवसर हैं, जहाँ वेतन और प्रतिष्ठा की लिए असीम संभावनाएं हैं. इलेक्ट्रोनिक मीडिया के आ जाने के बाद यह क्षेत्र बहुत ही आकर्षक और चुनौतीपूर्ण हो गया है.

लिपिक

सरकारी क्षेत्र (कर्मचारी चयन आयोग एवं रेलवे आदि) में लिपिक संवर्ग में नियुक्ति के लिए बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण होना आवश्यक है. संस्कृत के वे छात्र जिन्होंने बारहवीं या विशारद परीक्षा उत्तीर्ण की है, वे इस नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं. पूरे वर्ष किसी न किसी विभाग में इस पद पर भर्ती के लिए रिक्तियां आती रहती हैं. इसके लिए कम्प्यूटर का ज्ञान भी अनिवार्य हो गया है.

अन्य सरकारी सेवाएँ-

उपर्युक्त सेवाओं के अतिरिक्त भी सरकारी क्षेत्र में अनेक ऐसे अवसर हैं, जहाँ संस्कृत के अध्येता रोजगार पा सकते हैं, विद्यार्थियों को चाहिए कि वे अपनी जागरूकता का स्तर बढ़ाएं तथा नवीनतम तकनीक का उपयोग करने में पीछें न रहें. संस्कृत भाषा के अध्ययन के साथ तकनीक की जानकारी एवं व्यावसायिक पाठ्यक्रमों का अध्ययन रोजगार के नए-नए अवसर उपलब्ध करा सकता है.

निजी एवं सामाजिक क्षेत्र में रोजगार –

लेखक

लेखन एक कला है, जिसके लिए प्रेरणा एवं कौशल लेखक के समय से पूर्व का साहित्य देता है. शब्दकोश, साहित्यिक मान्यताएं, विषयवस्तु और लेखकीय दृष्टि के लिए भी परम्परागत साहित्य ही सबसे बड़ा स्रोत होता है. संस्कृत में न केवल दुनियाँ का सबसे विशाल साहित्य सुरक्षित है, अपितु वर्णन और विषय वैविध्य की दृष्टि से भी सबसे अनूठा है. जिन छात्रों की साहित्य विमर्श एवं सृजन में अभिरुचि है, वे संस्कृत साहित्य से प्रेरणा लेकर लेखन कार्य कर सकते है. आजकल लेखन का क्षेत्र बहुत व्यापक है, जिसमें प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रोनिक मीडिया, विज्ञापन, रेडियो, टेलीविज़न आदि के लिए लेखन भी आता है. इस क्षेत्र में रोजगार के असीमित अवसर उपलब्ध हैं.

ज्योतिषी

ज्योतिष का अध्ययन न केवल स्वयं के बौद्धिक व्यायाम और भविष्य के ज्ञान के रोमांच से युक्त है, अपितु आमजन की जिज्ञासा का भी विशिष्ट केंद्र है. दुनियाँ भर में प्रायः इसके जानने वालों के पास भीड़ लगी रहती है. व्यक्ति से लेकर सरकारे तक इस क्षेत्र के विशेषज्ञों का उपयोग करने में पीछे नहीं हैं. जहाँ तक आय की बात है, ये अध्येता के ज्ञान और कौशल पर आश्रित है.

वास्तु सलाहकार -

संस्कृत के ग्रन्थों में वास्तुपुरुष की चर्चा की गयी है, जिसका गृह, कार्यालय आदि के निर्माण में बड़ा महत्व है. आजकल वास्तु सलाहकार के रूप में रोजगार का एक नया विकल्प उपलब्ध है. संस्कृत के स्नातक वास्तुविज्ञान में दक्ष होकर रोजगार का अवसर सृजित कर सकते हैं. इस क्षेत्र में भी आय अध्येता के ज्ञान और कौशल पर आश्रित है.

पुरोहित

भारत जैसे देश में जन्म से लेकर मृत्यु तक होने वाले सोलह संस्कारों एवं अन्य उपासना अनुष्ठानों में पुरोहित की आवश्यकता पड़ती है. इसके विशेषज्ञ पुरोहित वर्ग के लिए रोजगार का यह एक अच्छा विकल्प है. लोकजीवन के साथ स्वयं के संस्कार और जीविका हेतु धन की प्राप्ति का इससे अच्छा कौन सा मार्ग हो सकता है. सुसंस्कृतज्ञों के इस क्षेत्र में आने से न केवल कर्मकाण्ड के प्रति आमलोगों में विश्वसनीयता की वृद्धि होगी अपितु उपासना कर्म भी फलदायी होगा. अस्तु परम्परागत संस्कृत के अध्येताओं को इस विकल्प पर विचार कर विशेषज्ञ सेवाएँ देने के लिए तैयार रहना चाहिए. इस क्षेत्र में भी आय अध्येता के ज्ञान और कौशल पर आश्रित है.

प्रवाचक -

भारत सहित दुनियाँ भर में लोगों को बुराइयों से हटाकर सद्मार्ग पर ले जाने के प्रयास में प्रवाचकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है. जीवन और सम्पत्ति के प्रति लोगों की असुरक्षा की भावना और उससे उत्पन्न तनाव की स्थिति गम्भीर होती जा रही है. इससे मुक्ति दिलाकर समाज को पुनः आशावाद और सहज जीवन की ओर मोड़ने का कार्य प्रवाचकों के उपर है. भारतीय दर्शन और लोक जीवन की बेहतर समझ रखने वाले संस्कृत के अध्येता इस क्षेत्र में आकर सामाजिक कल्याण के साथ आजीविका के लिए श्रेष्ठ अवसर पा सकते हैं. इस क्षेत्र में यश और प्रतिष्ठा के साथ जीवनवृत्ति की अपार सम्भावनाएं हैं.

शिक्षाशास्त्री -

संस्कृत ग्रन्थों एवं भारतीय दर्शन का गहन अध्ययन और उसमें निहित शैक्षिक मूल्यों का की समझ रखने वाले अध्येता शैक्षिक क्षेत्र में उन्नयन का कार्य कर सकते हैं. नवीनताम शैक्षिक तकनीक और प्रविधियों के साथ बदलते समाज पर शोध और विमर्श करने वाले अध्येताओं को निजी क्षेत्र में बड़ी प्रतिष्ठा और आय के अवसर प्राप्त होते हैं. शैक्षिक एवं शोध संस्थानों के साथ-साथ अध्यापकों के प्रशिक्षण के लिए इनकी विशेष मांग रहती है.

दार्शनिक

दर्शन व्यक्ति से लेकर समाज और राष्ट्र तक की दिशा तय करता है. समाज में कुछ ऐसे प्रश्नों पर विमर्श करने, जिनके समाधान आम सामाजिक व्यवस्था और तन्त्र के पास नहीं होते हैं अथवा बदलते सामाजिक और वैश्विक परिदृश्य में परम्परागत मूल्यों के साथ नवीन जीवन दृष्टि का तालमेल बिठाने में दार्शनिकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. इसलिए समाज में इन्हें सर्वाधिक प्रतिष्ठा प्राप्त है. इनके लेखों और व्याख्यानों से प्राप्त होने वाली आय उच्चस्तरीय जीवनयापन के लिए पर्याप्त होती है. इसके अतिरिक्त ऐसे अध्येताओं को औपचारिक रूप से कुछ संस्थानों में सेवा करने के अवसर भी प्राप्त होते हैं.

समाजसुधारक -

सामाजिक समरसता की स्थापना और समाज को जोड़ने में समाज सेवकों की बड़ी भूमिका होती है. छोटे-बड़े आयोजन हों या आपदा, गरीबों की शिक्षा–दीक्षा, स्वास्थ्य हो या अन्य ऐसे कार्य जिस ओर सुविधा सम्पन्न वर्ग का ध्यान नहीं जाता है, उस ओर समाज सुधारक कार्य करते हैं. समकालीन अव्यवस्थाओं और बुराइयों से समाज को बचाकर रखना, सत्ता और धर्मं की स्थापनाओं को समाज के निचले तबके तक पहुँचाने का कठिन कार्य भी इन्हीं समाज सुधारकों का है. समाज में ऐसे लोगों की बड़ी प्रतिष्ठा है. कई राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएं ऐसे लोगों के कार्य की सराहना करतीं हैं और बड़े-बड़े पुरस्कारों से उनका सम्मान करती हैं. ऐसे लोगों की जीवनवृत्ति सञ्चालन का दायित्व समाज अथवा स्वयंसेवी संस्थाएं स्वयं अपने ऊपर ले लेती हैं.

नेता -

छोटी से छोटी लोकतान्त्रिक इकाई से लेकर प्रदेश और राष्ट्र में नेतृत्व और व्यवस्था बनाने का गुरुतर दायित्व नेता के कन्धों पर होता है. नेता समाज या राष्ट्र को जिस दिशा की ओर ले जाना चाहता है, जनता उसी की ओर उन्मुख होकर चलने को तैयार हो जाती है. इसलिए किसी भी राष्ट्र में नेतृत्व का शिक्षित और संस्कारी होना अत्यावश्यक है. भारत जैसे बहुल जनसँख्या प्रधान और विशाल देश में केवल राजनीति में ही नहीं अपितु प्रत्येक क्षेत्र में कुशल नेतृत्व की आवश्यकता है. संस्कृत के अध्येताओं से ये अपेक्षा रहती है की वे जिस क्षेत्र में जायेंगे वहाँ पूरी निष्ठा और ईमानदारी से कार्य करेंगे, इसलिए उनके लिए यह क्षेत्र भी खुला हुआ है. इस क्षेत्र में पद, प्रतिष्ठा, चुनौतियाँ, अवसर और कार्यक्षेत्र की कोई सीमा नहीं हैं.

अन्वेषक

पूरे संसार में इतिहास आदि के ज्ञान का सबसे बड़ा स्रोत संस्कृत साहित्य है. वेद, पुराण, रामायण और महाभारत से लेकर संस्कृत के ललित साहित्य में तत्कालीन समाज एवं व्यवस्था का चित्रण है. इतिहास, भूगोल, शासन व्यवस्था, व्यापार, कृषि, जलवायु, नदियाँ, बादल, अधिवास, ग्रह-नक्षत्र सबके बारे में संस्कृत के विशाल साहित्य में चर्चा मिलती है. इन तत्वों के बारे में विमर्श करना तथा समय की आवश्यकता के अनुसार इनका विश्लेषण करना अन्वेषकों का कार्यक्षेत्र है. नासा जैसी संस्थाएं इस पर महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहीं है. भारत में भी ऐसे विद्वानों की आवश्कता है, जो तथ्यों को जुटाकर उनकी प्रामाणिकता पर कार्य करें.

उद्योगपति -

भारत जैसे विशाल जनसँख्या वाले देश में कल कारखाने लगाना बहुत ही लाभ देने वाला रोजगार मन जाता है. संस्कृत का अध्येता उद्योग लगाकर कितना प्रगति कर सकता है, इसका अनुमान पतंजलि प्रतिष्ठान जैसे उपक्रमों से लगाया जा सकता है. खान-पान, स्वास्थ्य, सौन्दर्य प्रसाधन पूजा सामग्री आदि ऐसे अनेक क्षेत्र है, जिसमें संस्कृत का ज्ञान सहायता करता है. भावनात्मक रूप से भी लोग इस क्षेत्र में आदर प्राप्त विद्वानों के उत्पाद प्रयोग करने में आगे देखे जाते हैं. इसके अतिरिक्त ऐसा कोई उद्योग-व्यापार नहीं है, जहाँ संस्कृत अध्येता के लिए अवसर न हो.

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संस्कृत का अध्ययन करने के बाद यदि इतनी कुछ संभावनाएं दिख रही है तो हमें जी जान से संस्कृताध्ययन करना चाहिए ।

जयतु संस्कृतम् ।

WhatsApp ग्रुप में से साभार ।

जिसने भी इतनी अच्छी माहिती एकत्र की उनको शत् शत् प्रणाम ।